भक्ति-भावना से ओत-प्रोत होने के साथ-साथ इसमें काव्य भी भरा हुआ है: श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं ।
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वैसे आप मीनू खरे जी के ब्लॉग पर चलिये उन्होंने आपके लिये पोस्ट किया है: श्री रामचँद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय
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शरावती के प्रवाह ने यदि इस रोमांचकारी प्रपात का रूप धारण न किया होता तो भी उसने अपने प्राकृतिक सौंदर्य के द्वारा मनुष्यों का मन हरण किया ही होता।
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वो गीत जो उन्होंने अपनी पत्नी से सीखा था-“ श्री राम चन्द्र कृपालु भज मन हरण भव भय दारुणं ” जिसने उनके प्राणों में नया उत्साह भर दिया था. (‘ निराला की साहित्य साधना-१: राम विलास शर्मा)
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रत् नाकर अर्थात् समुद्र आपका गृह है और लक्ष् मी जी आपकी गृहिणी हैं, तब हे जगदीश् वर! आप ही बतलाइए कि आप को क् या देने योग् य बच गया? राधिका जी ने आप का मन हरण कर लिया है, जिसे मैं आपको देता हूँ, उसे ग्रहण कीजिए।